Why is Antarctica turning green?

ऐसा देखा गया है कि तटीय अंटार्कटिका में बर्फ का कुछ हिस्सा हरा हो रहा है. कुछ वर्षों से हरी बर्फ की एक छोटी मात्रा दिखाई देती थी. लेकिन अब यह पूरे महाद्वीप में फैल रही है. इसका क्या कारण है, आखिर अंटार्कटिका हरा क्यों हो रहा है? अगर पूरे अंटार्कटिका की बर्फ पिघल जाए तो क्या होगा? आइये इसका विस्तार से अध्ययन करते हैं.

अंटार्कटिका के कुछ हिस्से हरे रंग में बदल रहे हैं. ऐसा बताया जा रहा है कि इसके पीछे का कारण वैश्विक जलवायु परिवर्तन (climate change) है. इसलिए हम कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका में कुछ रंग में परिवर्तन हो रहा है.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर बर्फ पिघलने भर में शैवाल के खिलने पर शोध किया है. विश्वविद्यालय की टीम ने बताया की सफेद लैंडस्केप हरे रंग में बदल रहे हैं यानी बर्फ हरी दिखने लगी है. यह नए शैवाल के विकास के कारण है और शोधकर्ताओं के अनुसार ये अन्य प्रजातियों के लिए पोषण का स्रोत सृजन करेंगे.

जैसा कि हम जानते हैं कि शैवाल के जीवन-रूप सूक्ष्म होते हैं, लेकिन जब वे एक साथ बढ़ते हैं तो वे बर्फ को चमकीले हरे रंग में बदल देते हैं और इसे अंतरिक्ष से देखा जा सकता है.

मैट डेवे (Matt Davey), जो कि स्टडी लीडर हैं, ने कहा कि “अंटार्कटिका पर भूमि आधारित जीवन, हमारी समझ में एक महत्वपूर्ण अग्रिम है, और आने वाले वर्षों में जलवायु में बदलाव के रूप में यह कैसे बदल सकता है का अध्ययन भी महत्वपूर्ण होगा”. उन्होंने आगे बताया कि “हिम शैवाल प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और हिम शैवाल महाद्वीप की शक्ति का एक महत्वपूर्ण घटक है.”

विज्ञान पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया जो बताता है कि वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर सूक्ष्म शैवाल विकास का पहला बड़े पैमाने पर नक्शा बनाया है और इसका उपयोग विकास की प्रगति को मैप करने के लिए किया जा सकता है क्योंकि पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है.

डेवी के अनुसार “यह एक समुदाय है. यह संभावित रूप से नए निवास स्थान बना सकता है. यह एक नए पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) की शुरुआत है.”

तो अब हम समझ गए कि अंटार्कटिका सूक्ष्म शैवाल के कारण हरा हो रहा है और जलवायु परिवर्तन का ही यह परिणाम है.

अंटार्कटिका के बारे में

अंटार्कटिका का महाद्वीपीय क्षेत्र बर्फ रहित मैदान है जो केवल 0.18% के आसपास है और अंटार्कटिक प्रायद्वीप का सबसे अधिक वनस्पति क्षेत्र उजागर मैदान का लगभग 1.34% है. शोध के पीछे ब्रिटिश की टीम का मानना है कि भविष्य में इन शैवाल के बढ़ने से जो कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण है उनकी सीमा का विस्तार होगा क्योंकि यह उन परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है जो उन्हें जीवित रहने के लिए आवश्यक है.

महाद्वीप के समुद्र तट पर, विशेष रूप से अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर द्वीपों के पास “हरी बर्फ” के खिलने वाले शैवाल पाए जाते हैं. तापमान नवंबर से फरवरी के बीच सामान्य से अधिक रहने पर यानी गर्म होने पर वे उगते हैं. यह भी देखा गया है कि शैवाल भी समुद्री पक्षियों और स्तनधारियों से प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनका मलमूत्र उत्सर्जन के लिए प्राकृतिक उर्वरक प्रदान करता है.

आइये अब अध्ययन करते हैं कि रिसर्च में कितना क्षेत्र शामिल है

शोधकर्ताओं ने शैवाल के 1,679 उगने पर काम किया, जो 1.9 वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्र को कवर करते हैं जो कार्बन सिंक या प्राकृतिक वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से अवशोषित करने की क्षमता के बराबर है जो एक वर्ष में लगभग 479 टन है.

अंटार्कटिक प्रायद्वीप के आसपास छोटे, निचले स्तर के द्वीपों पर लगभग दो-तिहाई हरे शैवाल खिलते हुए पाए गए थे और इस गर्मी में नए तापमान रिकॉर्ड स्थापित करने के साथ दुनिया में सबसे तीव्र ताप का अनुभव किया है. आपको बता दें कि दक्षिणी क्षेत्रों में बर्फ शैवाल कम संकेंद्रित होते हैं. इन प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव अधिक देखा गया है.

एक और कारण मॉस (Moss) की वृद्धि का होना है

अंटार्कटिका के बढ़ते हरे रंग के होने के पीछे एक और कारण मॉस (Moss) की वृद्धि का होना है.ग्लोबल वार्मिंग ने अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर मॉस (Moss) का विकास बढ़ा दिया है. अंटार्कटिका के अधिकांश भाग बर्फ से ढके हुए हैं लेकिन प्रायद्वीप के कुछ हिस्से मॉस से कवर्ड हैं. हर साल मॉस (Mossबढ़ती ही जा रही है.

जून 2017 में करंट बायोलॉजी में Widespread Biological Response to Rapid Warming on the Antarctic Peninsula एक अध्ययन प्रकाशित किया गया था.

आमतौर पर, मॉस (Moss) बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं और ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों में बढ़ते मौसम के अंत में वे विघटित होने के बजाय जमा होते रहते हैं. 

कार्बन समस्थानिक का संचय अधिक प्रकाश संश्लेषक गतिविधि का संकेत है और माइक्रोबियल गतिविधि में भी वृद्धि हुई है. अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने बताया कि 1950 के बाद से सभी स्थानों पर मॉस (Moss) और संचय में वृद्धि हुई है. यह संभवतः ग्लोबल वार्मिंग के कारण है जो जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है. और इस प्रकार के निरंतर वार्मिंग से अंटार्कटिक स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हो रहे हैं.

मॉस (Moss) क्या है?

मॉस (moss) एक फूल रहित, बीजाणु पैदा करने वाला पौधा है. वे बीज के बजाय छोटे कैप्सूल में बीजाणु पैदा करते हैं. यानी गर्भाधान के बाद बीजाणु उद्भिव या कैप्सूल बनता है जिसके अंदर छोटे-छोटे हजारों बीजाणु बनते हैं. इनमें फूल, लकड़ी या असली जड़ नहीं होती  है. समें जड़ों के बजाय मूलामास (Rhizoid) होते हैं. वे संवहन ऊतक रहित (non-vascular) पौधों का एक समूह हैं.

शैवाल (Algae) क्या हैं?

शैवाल जलीय जीवों का एक बड़ा और विविध समूह है जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं. शैवाल cholorophyllous), संवहन ऊतक रहित (Non vascular) और स्वपोषी (Autotrophic) होते हैं.

शैवाल का शरीर Thalloid होता है. ये ताजे जल, समुद्री जल, गर्म जल के झरनों, कीचड़ एवं नदी, तालाबों में पाए जाते हैं.

कुछ शैवालों में Flagella गति करने के लिए पाये जाते हैं. जो शैवाल बर्फ पर पाये जाते हैं उन्हें क्रिप्टोफाइट्स (Cryptophytes) और जो चट्टानो पर पाये जाते हैं उनको लिथोफाइट्स (Lithophytes) कहा जाता है.

– शैवाल पौधों से अलग होते हैं जैसे शैवाल में जड़ें, तने और पत्तियां नहीं होती हैं. यहां तक कि उनके पास अपने शरीर में पानी और पोषक तत्वों को प्रसारित करने के लिए पौधों की तरह एक संवहनी प्रणाली (vascular system) भी नहीं होती है.

– 2014 के लेख के अनुसार जो जर्नल बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ था, कई शैवाल एककोशिकीय (unicellular) होते हैं. वे विभिन्न रूपों और आकारों में भी होते हैं. वे एकल, सूक्ष्म कोशिकाओं के रूप में मौजूद हो सकते हैं और यहां तक कि मैक्रोस्कोपिक और बहुकोशिकीय भी हो सकते हैं, कालोनियों में जीवित रह सकते हैं शैवाल ताजे पानी और खारे पानी दोनों में पाए जाते हैं.

अब हम जलवायु परिवर्तन के बारे में अध्ययन करते हैं

जलवायु परिवर्तन एक औसत स्थिति है जैसे किसी क्षेत्र में लंबे समय तक तापमान और वर्षा का होना. जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान गर्म हो जाता है, वर्षा में बदलाव आ जाता है. पृथ्वी के गर्म होने के कुछ अन्य प्रभाव हैं:

– समुद्र का स्तर बढ़ जाता है.

– पर्वतीय ग्लेशियरों का सिकुड़ना.

– अंटार्कटिका और आर्कटिक में देखे गए सामान्य ग्रीनलैंड की तुलना में तेज़ दर से बर्फ का पिघलना.

– इसके अलावा फूल और पौधों के खिलने के समय का बदलना. वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले 150 वर्षों में पृथ्वी का औसत तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है.

अतः हम कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन मौसम के मिजाज में बदलाव है और इससे संबंधित परिवर्तन महासागरों, भूमि की सतहों और बर्फ की चादरों में देखे जाते हैं जो दशकों या उससे अधिक समय से हो रहे हैं.

Source : Jagran Josh

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