चर्चा में क्यों?
- भारत सरकार भूमि निम्नीकरण से निपटने के लिये जल व भूमि से सबंधित योजनाओं के एकीकरण पर विचार कर रही है।
- UNCCD की कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) के 14वें सत्र का आयोजन 2-13 सितंबर तक नई दिल्ली में होगा जहाँ विभिन्न देशों की सरकारों के रणनीतिक रूप से भूमि के प्रभावी उपयोग और सतत भूमि प्रबंधन के समान लक्ष्यों पर सहमत होने की उम्मीद है।
प्रमुख बिंदु
- भूमि निम्नीकरण से निपटने के लिये सरकार द्वारा मनरेगा सहित विभिन्न कार्यक्रमों के लिये बजट का आवंटन करने के साथ ही परिवर्तनकारी योजनाओं (Transformative Project) पर कार्य किया जा रहा है।
- सरकार भूमि निम्नीकरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality) के लक्ष्यों को निर्धारित करने के साथ जल व भूमि से संबंधित योजनाओं के अभिसरण द्वारा संसाधनों के अधिकतम प्रयोग की योजना पर विचार कर रही है।
- TERI द्वारा जारी ‘भारत में सूखा, भूमि निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण का अर्थशास्त्र’ रिपोर्ट के अनुसार उत्पादक भूमि का ह्रास वनों, आर्द्रभूमि, चरागाह भूमियों (Rangelands) और अन्य पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये चिंता का विषय है।
आवश्यकता क्यों?
- भारत की लगभग 30 प्रतिशत भूमि का निम्नीकरण हो चुका है।
- देश में भूमि निम्नीकरण और भूमि उपयोग परिवर्तन (Land Use Change) के कारण प्रतिवर्ष 3,17,739 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि का अनुमान है जो कि वर्ष 2014-15 में देश की GDP का 2.54 प्रतिशत तथा कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्रों से GVA का लगभग 15.9 प्रतिशत है।
- उपरोक्त अनुमानित लागत में हानि का लगभग 82 प्रतिशत भूमि निम्नीकरण के कारण और 18 प्रतिशत भूमि उपयोग परिवर्तन के कारण है।
- वर्ष 2030 तक भूमि निम्नीकरण और भूमि उपयोग परिवर्तन (Land Use Change) के कारण क्रमश: 94.53 मिलियन हेक्टेयर और 106.15 मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षेत्र के निम्नीकरण की संभावना है।
- जल क्षरण से प्रभावित क्षेत्र और खुले जंगलों के तहत क्षेत्र (मध्यम घने और बहुत घने जंगलों के साथ तुलना में) में दोनों परिदृश्यों में वृद्धि का अनुमान है। इससे निपटने के लिये भारत को इन क्षेत्रों में सुधार करने हेतु अधिक प्रयास की आवश्यकता होगी।
भूमि निम्नीकरण के कारण
- जनसंख्या का दबाव
- जलवायु परिवर्तन
- मृदा प्रदूषण
- भूमि उपयोग परिवर्तन (LUC)
- निर्वनीकरण
- झूम कृषि जैसी कृषि पद्धतियों का प्रयोग
- अधिक चराई
- अधिक सिंचाई
- बाढ़ व सूखा
सरकार के प्रयास
- वर्ष 2001 में मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने के लिये The National Action Programme for Combating Desertification(मरुस्थलीकरण रोकथाम हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना) तैयार किया गया।
- वर्तमान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों पर कार्यवाही करने वाले कुछ प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार हैं:
- एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP)
- राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)
- राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (GIM )
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS)
- कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट प्रोग्राम (CADWM)
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना।
- वर्ष 2016 में भारत का मरुस्थलीकरण और भूमि निम्नीकरण एटलस (Desertification and Land Degradation Atlas) जारी किया गया जिसमें वर्ष 2003-05 और वर्ष 2011-2013 की स्थिति की तुलना की गयी है जो सुभेद्यता और जोखिम मूल्यांकन के आधार पर कार्रवाई करने के लिये आधारभूत डेटा प्रदान करता है।
‘संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन’
(United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD)
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तीन रियो समझौतों (Rio Conventions) में से एक है। अन्य दो समझौते हैं-
1. जैव विविधता पर समझौता (Convention on Biological Diversity- CBD)।
2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)।
- UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।