भारतीय संविधान का आर्टिकल 30 देश में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों को कई अधिकार देता है. कुछ सोशल मीडिया पोस्ट इस आर्टिकल के प्रावधानों के बारे में भ्रम पैदा कर रहे हैं.
ये पोस्ट दावा करती है कि भारतीय संविधान का आर्टिकल 30A भारतीय स्कूलों में भगवत गीता, वेद और पुराणों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाता है जबकि अनुच्छेद 30 मदरसों में कुरान और हदीस की शिक्षा की अनुमति देता है. एक फेसबुक यूजर द्वारा किया गया पोस्ट इस प्रकार है;
हमने इसकी जाँच के लिए भारत का संविधान पढ़ा, हमने पाया कि भारतीय संविधान में ’30A ’नाम का कोई आर्टिकल नहीं है.
भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है. 27 जनवरी 2014 के भारत के राजपत्र के अनुसार, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म के
लोगों को भारत में अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिला है.
अनुच्छेद 28 (Article 28) कहता है कि जो भी शैक्षणिक संस्थान सरकार द्वारा दिए गए धन से चलते हैं उनमें कोई भी धार्मिक निर्देश नहीं दिया जाएगा. (What does Article 28 say)
अनुच्छेद 29 (Article 29) अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण से संबंधित है.
आर्टिकल 30: (Article 30 of Indian Constitution)
भारतीय संविधान का आर्टिकल 30 देश में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों को कई अधिकार देता है. यह आर्टिकल ही इन अल्पसंख्यकों को देश में देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अधिकार देता है.
अब भारतीय संविधान के आर्टिकल 30 के प्रावधानों पर एक नजर डालते हैं: – (Provisions of Article 30)
आर्टिकल 30, देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों को अधिकार देता है.
(1). सभी अल्पसंख्यकों (धार्मिक और भाषाई) को देश में अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों को स्थापित और संचालित करने का अधिकार होगा.
(1A). अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शैक्षणिक संस्थान की किसी भी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के लिए कोई कानून बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसा कानून, अल्पसंख्यकों के अधिकारों को ना तो रोकोगा और ना ही निरस्त करेगा.
(2. )राज्य सरकार, अल्पसंख्यक द्वारा शासित किसी भी शैक्षणिक संस्थान को आर्थिक सहायता देने के मामले में, भेदभाव नहीं करेगी
आर्टिकल 30 के तहत दी गई सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों तक सीमित है और इसे देश के सभी नागरिकों तक विस्तारित नही किया जाता है.
आर्टिकल 30 अल्पसंख्यक समुदाय को यह अधिकार देता है कि वे अपने बच्चों को अपनी ही भाषा में शिक्षा प्रदान करा सकते हैं. इसका मतलब है कि मुसलमान समुदाय चाहे तो अपने बच्चों को उर्दू और ईसाई चाहे तो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा सकता है.
देश में तीन प्रकार के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान हैं; (Types of Minority Institutions in India)
(a) सरकार से मान्यता लेने के साथ साथ आर्थिक सहायता की मांग करने वाले संस्थान;
(b) ऐसी संस्थाएँ जो राज्य से केवल मान्यता की मांग करती हैं और आर्थिक सहायता नहीं; तथा
(c) ऐसी संस्थाएँ जो न तो राज्य से मान्यता और न ही आर्थिक सहायता की माँग करते हैं.
उपरोक्त तीनों प्रकारों के संस्थानों की व्याख्या:–
ऊपर दिए गए a और b प्रकार के संस्थान, सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए बाध्य हैं. ये नियम; शैक्षणिक मानकों, पाठ्यक्रम, शिक्षण कर्मचारियों के रोजगार, अनुशासन और स्वच्छता आदि से संबंधित हैं.
तीसरे प्रकार के संस्थान अपने नियमों को लागू करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें श्रम कानून, अनुबंध कानून, औद्योगिक कानून, कर कानून, आर्थिक नियम, आदि जैसे सामान्य कानूनों का पालन करना पड़ता है.
इसका मतलब यह नहीं है कि अल्पसंख्यक संस्थानों के तीसरे प्रकार के संसथान या अनएडेड संस्थान, नियुक्तियां करते समय राज्य द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंड / योग्यता का पालन नहीं करेंगे. इन संस्थानों को केवल एक तर्कसंगत प्रक्रिया अपनाकर शिक्षकों / व्याख्याताओं और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति करने की स्वतंत्रता होगी.
आर्टिकल 30 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (Supreme Court decision of Article 30):-
मलंकारा सीरियन कैथोलिक कॉलेज केस (2007) के मामले में दिए गए एक फैसले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि;
अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को दिए गए अधिकार केवल बहुसंख्यकों के साथ समानता सुनिश्चित करने के लिए हैं और इनका इरादा अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की तुलना में अधिक लाभप्रद स्थिति में रखने का नहीं है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस बात के कोई सबूत नही हैं कि अल्पसंख्यकों को कानून से बाहर कोई भी गैर-कानूनी अधिकार दिया गया है.
राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक व्यवस्था,भूमि, सामाजिक कल्याण, कराधान, स्वास्थ्य, स्वच्छता और नैतिकता आदि से संबंधित सामान्य कानूनों का पालन अल्पसंख्यकों को भी करना पड़ता है.
इस प्रकार यह पाया गया कि भारतीय संविधान में कोई आर्टिकल 30 A मौजूद नहीं है और सोशल मीडिया पर लिखी गयी पोस्ट पूरी तरह से निराधार हैं. इसे पवित्र और मजबूत भारतीय संविधान को बदनाम करने की साजिश कहा जा सकता है.
Source :- Jagran Josh